Friday, September 7, 2007

एक थकी दोपहर

भोज समाप्‍त हुआ। लोगों की बिदाई हो चुकी। लेकिन बहनजी अभी बैठी थीं। बार बार कह रही थीं मेरी जाने की चिंता नहीं करो। जाहिर था अभी उनके बैठने का मन था। कोई आपके साथ बैठना चाहे तो भला मना कैसे कर सकते हैं। वह भी तब जब आपने खुद आमंत्रित किया हो।
बातों में से बातें निकलती जाती हैं। गप या अड्डेबाजी इसी को शायद कहत हैं। कार्यक्रम के बाद मेजबानों के चेहरे पर थकान पढ़ी जा सकती थी। और बहनजी इस बात से अनभिज्ञ नहीं थीं। बल्कि सब की सावधान उबासियों को पढ़कर वह कहती जा रहीं थीं कि तुमलोंगों की दोपहर की नींद खराब कर रही हूं।
और उनकी बातें जारी थीं। ----- बेटी विदेश में है, अपने परिवार में खुश है। बेटा रेडियो जॉकी है, घर से दूर रहता है। और उनसे तो बात ही नहीं होती। दिन भर में दो चार वाक्‍य। बाकी उनका समय अपने पेड़ पौधों के साथ बीतता रहता है।

यानी बिल्‍कुल पौधों जैसे हो गए हैं ----
हां, खाना बन गया है आ जाओ यही मेरा वाक्‍य होता है। या फिर खाना बन गया क्‍या उनका वाक्‍य।
यह ऐसा समय है उम्र का कि समय काटे नहीं कटता। एक समय था, बच्‍चे छोटे थे, घर-गिरस्‍ती नई थी तो टाइम कैसे बीत जाता था पता ही नहीं चलता था। लेकिन अब ---- वह हम श्रोताओं की तरु देखती रहीं।
पहले बेटी,फिर बेटा और बाद में पति की बातें। दोस्‍तों की भी अपनी दुनिया है सब नाती पोतों में लगे हैं। जाओ भी तो किसके पास।
तो मेरे पास कुछ बचपन की आदते हैं। किताबें, संगीत लेकिन वह भी कितना समय लेंगी। टीवी पर ऐसा कुछ आता नहीं तो देखते रहो। अब जो भी कार्यक्रम आतें हैं तुमसब जानते हो क्‍या आ रहे हैं। बाकी बाजार होता है सब्‍जी वाला दूधवाला बाजार में चले जाओ तो बहुत सारी चीजे होती हैं। सब्जियां चुनने और नए सामानो की ताकिद करने में उनके बारे में जानने में अच्‍छा वक्‍त निकल जाता है।
लेकिन सबसे अच्‍छा होता है आत्‍मीय लोगों के साथ बैठना बतियाना। गांव घर से दूर अजनबी शहर में सब ऐसे बिखरे हुए हैं कि किसी शहर में किसी दोपहर में किसी आत्‍मीय का मिलना कितना कठिन है।
चलती हूं मैं। बहुत सारा समय लिया और तुमलोगों की अच्‍छी नींद छीनी, लेकिन इतनी देर तुमलोगों के साथ बैठना अच्‍छा लगा। बुढ़ापे की ऐसी दोपहर खूब याद रहेगी। तुमलोगों के पास समय ता नहीं है लेकिन मौका लगे तो आना एक दिन----

1 comment:

ghughutibasuti said...

बच्चों के घर से जाने के बाद यही जीवन अधिकांश महिलाओं का हो जाता है । बहुत अच्छा लिखा है ।
घुघूती बासूती