भाईसाब को लगता है कि उनके साथ जो हो रहा है वह सिर्फ उन्हीं के साथ होता है। बाकी लोग दुनिया में कितने खुश हैं। घर-परिवार, नौकरी। उनकी उम्र के लोगों के पास सबकुछ है। सबकुछ यानी सेटल्ड, पूछने पर वे यही शब्द इस्तेमाल करते हैं। और व्याख्या कुछ इस तरह कि सेटल्ड मायने घर, बीवी, बच्चे, गाड़ी, दफ्तर । समय से ऑफिस जाना-आना । कोई झंझट नहीं । सबकुद स्मूदली चल रहा हो। जब वे हो कहते हैं तो उनकी आखों में एक अजीब सा खालीपन होता है। यही वही खालीपन है जो उन्हें टीसता रहता है। संग के लोग न जाने कहां कहां पहुंच गए। और हम ---- वे जो कहते हैं वैसा कहना ठीक नहीं लग रहा है लेकिन ना कहें तो बेईमानी होगी -- यहीं गटर में पड़े हैं।
यह बात अच्छी तरह से जानी हुई है कि भाईसाब गटर में कतई नहीं हैं। लेकिन उन्होंने मान लिया है कि उनकी जो जिन्दगी है वह गटर है अगर दुनिया में कहीं नरक है तो बस उनके आस-पास ही है। बाकी तो बस स्वर्ग है।
-- चालीसा लगने वाला है। ना तो ढंग की चाकरी और ना ही कोई उद्देश्य। वह भी होता तो चल जाता। कुछ तो दुनिया के काम आते। लेकिन ऐसे मायाजाल में फंसे कि पूछो मत। ना निगलते बन रहा है ना उगलते। ना आर ना पार -- ऐसा कहते हुए वे चुप हो जाते हैं। कुछ गहरे उतरकर सोचते हैं, कोई बात तो निकले -- शायद पहले कहे गए दो जुमलों जैसा ही कोई और जुमला ढूंढ रहे हैं -- आपके पास इससे मिलता जुल्ाता कुछ हो तो उन्हें बताइयेगा।
Thursday, August 30, 2007
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1 comment:
दूर कर ढ़ोल सुहावने। जीवन सब जगह एक जैसा ही है।
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